Maa Narmada Gou Kumbh 2020 Jabalpur

संत समागम 2020

मां नर्मदा गौ कुंभ

Country   India    State  Madhya Pradesh   District  Jabalpur

नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है। शास्त्रों में लिखा है कि यह विश्व की सबसे प्राचीन नदी हैं। इनकी उत्पत्ति महादेव के पसीने की बूंद से हुई थी, इसलिए इन्हें शिव सुता भी कहा जाता है। जेडएसआई की रिपोर्ट के अनुसार विज्ञान ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि नर्मदा का अस्तित्व बेहदर प्राचीन है। सृष्टि का पहला प्राणी नर्मदा वैली में ही जन्मा था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जो पुण्य गंगा में स्नान करने से मिलता है, उतना पुण्य नर्मदा के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है। नर्मदा तीरे तपस्कुर्यात, मरणं जान्हवी तटे.... की उक्ति के अनुसार यहां वैदिक काल से ही साधू-सन्यासी तपस्या करते रहे हैं और तो और यह महादेव भगवान शिव की भी तपोस्थली रही है। यही कारण है कि इस पुण्य सलिला के हर घाट से कोई न कोई रोचक तथ्य जुड़ा हुआ है। ग्वारीघाट के बारे में तो यह कहा जाता है कि यहां पर स्वयं मां गौरी ने तपस्या की थी।

गौ माता की उत्पत्ति

गौ की अपार महिमा और दैवी गुणों से हिन्दू शास्त्रों के पृष्ठ भरे पड़े हैं। पुराणों में गौ के प्रभाव और उसकी श्रेष्ठता की ऐसी अनगिनत कथाएँ मिलती हैं जिन से विदित होता है कि हमारे पूर्वज गौ के महान भक्त थे और उसकी रक्षा करना अपना बहुत बड़ा धर्म समझते थे। गौ-रक्षा में प्राण अर्पण कर देना हिन्दू बड़े पुण्य की बात समझते थे और उसका पालन करना बड़े सौभाग्य की बात मानी जाती थी। गौ का महत्व यहाँ तक समझा जाता था कि उसके शरीर में उन 33 करोड़ देवताओं का निवास बतलाया गया और उसकी उत्पत्ति अमृत,लक्ष्मी आदि चौदह रत्नों के अंतर्गत मानी गई । यद्यपि ये कथायें एक प्रकार की रूपक हैं पर उनके भीतर बड़े-बड़े आध्यात्मिक तथा कल्याणकारी तत्त्व भरे हैं।

गौ माता का सर्वोपरि धार्मिक महत्व ( Gau Mata paramount religious importance )

1. गाय – पवित्रतम् पशु

यह तो सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में गाय को पवित्र माना गया है, इसकी पूजा की जाती है, इसकी सेवा की जाती है, लेकिन क्यों? क्या यह महज़ मान्यता है या इसके पीछे कोई कारण भी है? वर्षों से हो रहे रीति-रिवाज़ हमेशा ही निभाए जाते हैं, आज के युग में भी लोग प्राचीन रिवाज़ों का पालन कर रहे हैं, लेकिन हर कोई इन रिवाज़ों का महत्व और उद्देश्य नहीं जानता।

2.गाय की पूजा क्यों?

तो गाय की पूजा क्यों की जाती है? और इसका उद्देश्य क्या है, क्या महत्व है? गौ पूजा से हमें क्या लाभ मिलता है? आज का यह आर्टिकल इन्हीं प्रश्नों के उत्तर से ही बना है। यहां हम गाय से संबंधित कुछ ऐसे ज्योतीष उपाय भी बताएंगे, जिन्हें करने से आपके जीवन में सुख एवं संपदा की वर्षा होगी।

3.महाभारत में गौ पूजा

हिन्दू धर्म के महानतम ग्रंथ महाभारत में गौ पूजा से संबंधित कुछ बातें उल्लेखनीय हैं। इसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति, गाय माता (हिन्दू धर्म एवं गाय को माता की उपाधि दी गई है) की सेवा और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है उस पर संतुष्ट होकर गौएं उसे अत्यन्त दुर्लभ वर प्रदान करती हैं।

4.क्या करें और क्या नहीं

यह भी कहा गया है कि गौओं के साथ मन से भी द्रोह न करें, उन्हें सदा सुख पहुंचाएं, उनका दिल से सत्कार करें और नमस्कार आदि के द्वारा उनका पूजन करते रहें। जो मनुष्य इन बातों का पालन करता है वह जीवन में सुख एवं समृद्धि का भागी होता है।

5.गोधूलि योग

ज्योतिष शास्त्र में गोधूलि नामक एक योग होता है, यह योग गाय से संबंधित है। इस योग के संदर्भ में ऐसा माना जाता है कि यदि किसी के विवाह के लिए उत्तम मुहूर्त नहीं मिल रहा है या फिर भविष्य में किसी के वैवाहिक जीवन में परेशानियां आने के संकेत हैं और उन्हें दूर करना चाहते हैं तो गोधूलि योग में वर-वधु का विवाह करें।

6.गाय के सींग

पौराणिक तथ्यों के अनुसार गाय के सींग में ब्रह्मा विष्णु महेश का वास होता है। हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक भविष्य पुराण में कहा गया है - शृंगमूले गवां नित्यं ब्रह्मा विष्णुष्च संस्थितौ । श्रंरग्राग्रे सर्व तीर्थानि स्थावराणि चराणि च।। षिवो मघ्ये महादेवः सर्वकारण कारणम। ललाटे संस्थिता गौरी नाषावंषे च शणमुखः।।

7.गौ माता में तीर्थों का निवास

तो यदि आप किसी कारणवश तीर्थ जाने से असमर्थ हैं तो गाय की सेवा करें, आपको सभी तीर्थों का पुण्य प्राप्त हो जाएगा। ऐसी भी मान्यता है कि गाय की सेवा के साथ-साथ उसकी साफ-सफाई का भी ध्यान रखें, उन्हें समय से भोजन कराएं, उनके आसपास के वातरवरण को साफ-सुथरा रखें और उन्हें मक्खी-मच्छर से भी बचाएं तो उस व्यक्ति को कपिला गाय के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।

8.गोप अष्टमी

गोप अष्टमी का उल्लेख ‘निर्णयामृत’ एवं ‘कूर्मपुराण’ में किया गया है। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को प्रातः काल के समय गौओं को स्नान कराएं, गंध पुष्पादि से पूजन करें तथा अनेक प्रकार के वस्त्रालंकार से अंलकृत करके उनके गोपालां (ग्वालों) का पूजन करें।

गौ माता का वैज्ञानिक एवं आर्थिक महत्व ( Scientific and economic importance of Gau Mata )

1.गो दूध का वैज्ञानिक महत्व

हृदय रोगियों के लिये गाय का दूध विशेष रूप से उपयोगी है। गाय के दूध के कण सूक्ष्म और सुपाच्य होते हैं। अतः वह मस्तिष्क की सूक्ष्मतम नाडि़यों में पहंुच कर मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करते हैं। गाय के दूध में केरोटीन (विटामिन-ए) नाम का पीला पदार्थ रहता है, जो आंख की ज्योति बढ़ाता है। चरक सूत्र स्थान 1/18 के अनसार, गाय का दूध जीवन शक्ति प्रदान करने वाले द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ है। गाय के दूध में 8 प्रतिशत प्रोटीन, 8 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 0.7 प्रतिशत मिनरल्ज (100 आई.यू) विटामिन ए और विटामिन बी, सी, डी एवं ई होता है। निघण्टु के अनुसार गाय का दूध रसायन, पथ्य, बलवर्धक, हृदय के लिये हितकारी, बुद्धिवर्धक, आयुप्रद, पुंसत्वकारक तथा त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) नाशक है।

2.गाय के घी का वैज्ञानिक महत्व

गो का घी खाने से कोलेस्टरोल नहीं बढ़ता। इसे सेवेन से हृदय पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। रूसी वैज्ञानिक शिरोविच के शोधानुसार गाय के घी में मनुष्य शरीर में पहंुचे रेडियोधर्मी कणों का प्रभाव नष्ट करने की असीम शक्ति है।गो के घी से यज्ञ करने से आक्सीजन बनती है। गाय के घी को चावल के साथ मिलाकर जलाने से (यज्ञ) ईथीलीन आक्साइड, प्रोपीलीन आक्साइड और फोरमैल्डीहाइड नाम की गैस पैदा होती है। ईथीलीन आक्साइड और फारमैल्डीहाइड जीवाणी रोधक है जिसका उपयोग आपरेशन थियेटर को कीटाणु रहित करने में आज भी होता है। प्रोपीलीन आक्साइड वर्षा करने के उपयोग में आती है- अर्थात गो के घी द्वारा किये गये यज्ञ से वातावरण की शुद्धि और वर्षा होना दोना स्वाभाविक परिणाम हैं। भाव प्रकाश निघण्टु के अनुसार गो घष्त नेत्रों के लिये हितकारी, अग्निप्रदीपक, त्रिदोष नाशक, बलवर्धक, आयुवर्धक, रसायन, सुगंधयुक्त, मधुर, शीतल, सुंदर और सब घष्तों में उत्तम होता है। गो नवनीत (मक्खन) हितकारी, कांतिवर्धक, अग्निप्रदीपक, महाबलकारी, वात, पित्त नाशक, रक्त शोधक, क्षय, बवासीर, लकवा एवं श्वांस रोगों को दूर करने वाला होता है।

3.गोमूत्र का वैज्ञानिक महत्व

गोमूत्र में ताम्र होता है जो मानव शरीर में स्वर्ण के रूप में परिवर्तित हो जाता है। स्वर्ण सर्व रोग नाशक शक्ति रखता है। स्वर्ण सभी प्रकार का विषनाशक है। गोमूत्र में ताम्र के अतिरिक्त लोहे, कैल्शियम, फास्फोरस और अन्य प्रकार के क्षार (मिनरल्स), कार्बोनिक एसिड, पोटाश और लेक्टोज नाम के तत्व मिलते हैं। गोमूत्र में 24 प्रकार के लवण होते हैं जिनके कारण गोमूत्र से निर्मित विविध प्रकार की औषधियां कई रोगों के निवारण में उपयोगी हैं। गोमूत्र कीटनाशक होने से वातावरण को शुद्ध करता है और जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। गोमूत्र त्रिदोष नाशक है, किन्तु पित्त निर्माण करता है। लेकिन काली गाय का मूत्र पित्त नाशक होता है। नवयुवकों के लिये गोमूत्र शीघ्रपतन, धातु का पतलापन, कमजोरी, सुस्ती, आलस्य, सिरदर्द क्षीण स्मरण शक्ति में बहुत उपयोगी है। पंचगव्य गोघृत गोमय, गोदधि, गोदुग्ध, गोमुत्र से मिलकर बनता है। उसका सेवन मिर्गी, दिमागी कमजोरी, पागलपन, भयंकर पीलिया, बवासीर आदि में बहुत उपयोगी है। कैंसर जैसे दुस्साध्य और उच्च रक्तचाप तथा दमा जैसे रोगों में भी गोमूत्र सेवन अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है।

4.गोबर का वैज्ञानिक महत्व

गाय के ताजे गोबर से टी बी तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं। आणविक विकरण से मुक्ति पाने के लिये जापान के लोगों ने गोबर को अपनाया है। गोबर हमारी त्वचा के दाद, खाज, एक्जिमा और घाव आदि के लिये लाभदायक होता है।

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