Mahua Shiva Temple

सतपुड़़ा की हरी भरी वादियों में बड़वानी के नागलवाड़ी गांव में भीलट देव का है शिखरधाम। सावन में यहां बादल इतने नीचे होते हैं कि आप हाथ ऊंचा कर दें तो उस तक पहुंच जाएं। महिमा ऐसी की नागपंचमी के मेले में करते हैं पांच लाख से ज्यादा लोग दर्शन|

सतपुड़़ा की हरी भरी वादियों में बड़वानी जिले की राजपुर तहसील के नागलवाड़ी गांव में भीलट देव शिखरधाम है। ये सैकड़ों वर्षों से शिखरधाम के नाम से प्रसिद्ध हैं। सावन में शिखरधाम तक कावडि़ए भी जाते हैं प्रतिवर्ष नागपंचमी पर लाखों लोग दर्शन आरती दर्शन करते हैं। यहां आवागमन के साधन उपलब्ध हैं। नागलवाड़ी मंदिर संस्थान ने बताया कि सावन की नागपंचमी पर श्री भीलट देव संस्थान की ओर से गांव और जिला प्रशासन के सहयोग से श्री भीलट देव का 5 दिवसीय मेला लगता र्है। ये मेला 28 जुलाई 2017 नागपंचमी से शुरू होगा, जो एक अगस्त को समाप्त होगा। यहां प्रतिदिन कई धार्मिक अनुष्ठान किए जाएंगे। नागपंचमी पर्व की पूर्व संध्या के तहत रात्रि 10 बजे से दुग्धाभिषेक शुरू होगा। रात्रि 1 बजे गर्भगृह शृंगार व सुबह 4 बजे महाआरती की जाएगी। वहीं बाबा को 108 व्यंजनों का भोग भी लगाया जाएगा।

हरदा के रोलगांव पाटन में हुए थे पैदा

मान्यताओं के आधार पर भीलट देव का जन्म करीब 853 वर्ष पूर्व मध्यप्रदेश के हरदा जिले के नदी किनारे स्थित ग्राम रोलगांव पाटन में हुआ। माता का नाम मेदाबाई व पिता का नामदेव रेलन राणा था। गवली परिवार के होकर रेलन शिव के परम भक्त थे। दोनों परम भक्त होने के बाद भी इनके घर कोई संतान नहीं थी। भोलेनाथ की कठोर तपस्या के बाद शिवजी पार्वती ने उन्हें सुंदर बालक के रूप में भीलट देव को जन्म देकर शिव पार्वती ने वचन लिया कि मैं तुम्हें घर पर भी दूध दही प्रतिदिन मांगने आऊंगा। यदि आपने हमें नहीं पहचाना तो इस बालक को उठा ले जाएंगे। लालन-पालन में एक दिन दोनों ही शिव-पार्वती को दिया वचन भूल गए। तभी शिव जी ने बालक को उठाया व पालने में अपने गले का नाग रख बालक को लेकर चौरागढ़ (वर्तमान के पंचमढ़ी) चले गए। इधर, पालने में नाग देवता को देखकर माता मेदा व रेलनजी बेसुध हुए और फिर वापस शिवजी पार्वती की तपस्या की शिव पार्वती ने कहा कि हमारे वचन अनुसार आपने हमें पहचाना नहीं हम बालक को शिक्षा दीक्षा करेंगे। पालने में हमने जो नाग छोड़ा है, उसकी पूजा दोनों रूप में होगी भीलट व नाग रूप में।

कैसे पहुंचे नांगलवाड़ी

महाराष्ट्र के धुलिया इंदौर खंडवा खरगोन से आसानी से नागलवाड़ी शिखर धाम आया जा सकता है। गूगल मैप के जरिए भी भिलट देव की लोकेशन देखकर नागलवाड़ी शिखरधाम जाया जा सकता है। बड़वानी व खरगोन जिले की सीमा पर स्थित ग्राम नागलवाडी खरगोन से 50 किलोमीटर और बड़वानी जिला मुख्यालय से 74 किलोमीटर है, यहां आगरा-मुंबई यानी एबीरोड पर भी सेंधवा से पहले ही नांगलवाड़ी तक जाया जा सकता है।

-खरगोन से 50 किमी

-सेगांव से 18 किमी

-बड़वानी से 74 किमी

-आगरा गुवाहाटी मार्ग से 18 किमी

-सेंधवा से 27 किमी


Vaishno Devi Mandir Barwani

बड़वानी। मां वैष्णोदेवी मंदिर धोबड़िया हिल्स पहाड़ी पर है। इसका 19 वर्ष पूर्व निर्माण किया गया। यहां बड़ी संख्‍या में देवी भक्‍त आते हैं।

पुजारी पं. सचिन शर्मा के अनुसार मान्‍यता है कि जो भी भक्त माता के दरबार में आता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।

इसका निर्माण शहर के आनंद हल्दीवाल द्वारा करवाया गया। मंदिर के नीचे की ओर गुफा, आकर्षण का केंद्र है। मंदिर का मुख्य द्वार आकर्षक नक्काशीदार है। प्रतिदिन माता पूजन, आरती होती है।

नवरात्रि के दौरान गरबा आयोजन, महाआरती, प्रसादी वितरण होता है। विशेष विद्युत सज्जा की जाती है। दशहरे के बाद विशाल भंडारा होता है। इसमें हजारों श्रद्घालु प्रसादी ग्रहण करते हैं। भंडारे के दौरान पूजन सामग्री, धार्मिक पुस्तकें, फोटो, खेल-खिलौनों की दुकान लगती है।

हरदा के रोलगांव पाटन में हुए थे पैदा

मान्यताओं के आधार पर भीलट देव का जन्म करीब 853 वर्ष पूर्व मध्यप्रदेश के हरदा जिले के नदी किनारे स्थित ग्राम रोलगांव पाटन में हुआ। माता का नाम मेदाबाई व पिता का नामदेव रेलन राणा था। गवली परिवार के होकर रेलन शिव के परम भक्त थे। दोनों परम भक्त होने के बाद भी इनके घर कोई संतान नहीं थी। भोलेनाथ की कठोर तपस्या के बाद शिवजी पार्वती ने उन्हें सुंदर बालक के रूप में भीलट देव को जन्म देकर शिव पार्वती ने वचन लिया कि मैं तुम्हें घर पर भी दूध दही प्रतिदिन मांगने आऊंगा। यदि आपने हमें नहीं पहचाना तो इस बालक को उठा ले जाएंगे। लालन-पालन में एक दिन दोनों ही शिव-पार्वती को दिया वचन भूल गए। तभी शिव जी ने बालक को उठाया व पालने में अपने गले का नाग रख बालक को लेकर चौरागढ़ (वर्तमान के पंचमढ़ी) चले गए। इधर, पालने में नाग देवता को देखकर माता मेदा व रेलनजी बेसुध हुए और फिर वापस शिवजी पार्वती की तपस्या की शिव पार्वती ने कहा कि हमारे वचन अनुसार आपने हमें पहचाना नहीं हम बालक को शिक्षा दीक्षा करेंगे। पालने में हमने जो नाग छोड़ा है, उसकी पूजा दोनों रूप में होगी भीलट व नाग रूप में।

कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग: बारवानी के लिए निकटतम हवाई अड्डा है:देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा, इंदौर|

रेल मार्ग: निकटवर्ती रेलवे स्टेशन बारवानी:इंदौर रेलवे स्टेशन|

सड़क मार्ग: बारवानी को निकटतम बस स्टैंड है:बरवानी बस स्टैंड|


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